काफी कोशिश की दुनिया ने ,
पाबंदियों की, सलाखों में, कैद करने की !
मगर, वो जो आसमान था, मेरे जीवन का ;
उसमें, उम्मीद की रोशनी ,
कोई कोने, में ही सही !
हर पल, अंधेरों से, लड़ती-भिड़ती रही
साथ किसी सूरज का मिले, या न मिले !
आसमान तेरा, फिर भी जग मगायेगा !
मुझसे, यह कहती रही ।
इन सलाखों में भी ;
मुझे आज़ाद रहने की ,
ताकत देती रही ।
ताकत, देती रही ।।
~ FreelancerPoet
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क्या सलाखें कभी किसी के नज़रिए को ,
कैद कर पाई है भला ?
आपको क्या लगता है ??
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