मैं अंधेरों से भरा था ;
वो रोशनी की मानो थी परी !
एक दुजे से, कुछ यूं अलग थे ;
रूह से मानो, हम दोनों ही ।
मगर खुदा को वो दिखा ;
जिसे हम न, देख पा रहे थे ।
एक दुजे से, अलग तो थे मगर ;
अलग होकर भी हम खास थे ।
हमारा मिलना ज़रूरी था मानो ;
एक दुजे के ही वास्ते ।
हम दूर तो थे मगर ,
कम से लगने लगे थे यह फासले ।
खुदा न फिर राह हम दोनों की ;
एक दूसरे से कुछ यूं मिला ही दी !
उस शाम की तरह मानो ,
जहां, सूरज और चांद एक दुजे से मिलते हैं ;
रात का अंधेरा , और दिन की रोशनी मिलते हैं ।
जादू सा था मानो वो पल हमारा !
जब हम उस शाम को मिले थे ।
शायद यही कारण है कि ;
हम दोनों को ही ,
प्यार हुआ शामों से फिर ।
सुबह और रातों से फिर ।
अंधेरों और उजालों से फिर ।।
~ FreelancerPoet