नारी के अनेक रूप होते है,
नारी ममता भी है,
नारी शमता का प्रतिक भी है,
नारी अहंकार भी हैं,
नारी सौन्दर्य की परिभाशा भी,
जरुरत परने पर नारी शस्त्र भी उठाती है,
और दुसरो के घावों को भी भरती है,
प्रेम करना भी नारी सिखाती हैं,
और क्रोध करना भी,
पर जब जब नारी के सम्मान पर कोइ हाथ उठाता हैं,
जब जब अपना मर्यादा भंग कर कोइ,
नारी का अपमान करता है,
तब तब एक युग का विनाश होता है,
चाहे त्रेता युग हो या द्वापर,
नारी ने अपना क्रोध प्रकट जरूर किया है,
सीता माता अपने मन से बनवास चली गई,
या फिर द्रौपदी ने दुशासन के लहु से अपने केश धोये,
लेकिन किसी ने भी अपने उपर लगाए गए अपमान तनिक टिकने ना दिया,
अगर नारी को कोइ वस्तु समझेगा,
या नारी को कोइ खेल का पात्र बना देगा,
तब धर्म के पुनः स्थापना हेतु,
युुध जरूर होगा,
और अधर्मियो का विनाश भी।