मेरे खयालों का समुन्दर.....
मेरे खयालों का एक समंदर है ,
नीला, गहरा ;
इतना गहरा की शायद,
इसकी गहराई तक कोई न पहुँच सके !
मगर , पहुँच अगर गया ;
तो, शायद कईं चीज़े, वहां उसे मिले ।
कई चीज़े ऐसी भी है ;
जो, इसकी सतह पर तैरती रहती है ।
चीज़े, जिन्हें 'खयाल' कहते है कई लोग !
नजाने, वो इसकी सतह पर ;
एक छोर से दूसरी छोर ,
क्यों सफर करती रहती है ?
शायद, वह बस यूँहीं भटकती हैं ;
या, शायद इन छोरों के बीच की ,
दूरी नापने का, प्रयास वह करती हैं ।
बेफिजूल, सा ही सही ,
मगर प्रयास वह करती है ।
मगर, आज कल इस दुनिया में ;
एक अजीब सी हल-चल मची पड़ी है !
गहराइयों में दबी चीजें, वापस सतह पर ,
आने लगी हैं ।
मानो, की गुम नज़रों से हुई थी सिर्फ !
अस्तित्व से नहीं ;
इस बात को बता रही हैं ।
इस बात को बयां कर रही हैं।
~~ FreelancerPoet