कागज़ के प्लेन....
बचपन में अक्सर खाली वक़्त में ,
कागज़ के प्लेन बनाया करता था !
मस्ती-मस्ती में ही, इस तरह ,
थोड़ा-बहुत समय बिताया करता था ।
पर फिर,समय की हवाओं में ,
कागज़ के प्लेन कहीं पीछे ही छूट गए ;
उनके ही साथ-साथ मानो ,
मेरे भी कुछ सपने, जो आसमान से जुड़े थे ;
वो भी कहीं पीछे ही छूट गए ।
मगर फिर एक दिन वापस ,
जब किसी के उड़ते कागज़ के प्लेन ने ,
मुझसे टकरा कर मुझे जैसे पुकार दी !
ज़मीन पर उतर कर अपनी उड़ान को आराम ,
और मानो मेरे सीने में बुझी लॉ को ,
लपट में बदल सकने वाली हवा दी ।
मैं फिर उसी कागज़ के प्लेन को पकड़ ,
आसमान की और देखने लगा !
ज़रा पीछे हटा, और ज़ोर से फिर ,
आसमान में उस प्लेन को उड़ान दी ,
अपने भूले हुए सपनों को भी ;
फिर उड़ान भरने देना है मुझे ,
इस सीख को लेकर ,
फिर उड़ान भरने की
मैंने फिर से कोशिश की ।
मैंने, फिर से कोशिश की ।।
~ FreelancerPoet
Khoobsurat!